Sawan Kumar/नित जीवन के संघर्षो से

Created Fri, 01 Mar 2024 18:13:22 +0530 Modified Mon, 11 Mar 2024 16:11:07 +0000
134 Words

नित जीवन के संघर्षो से,
जब टूट चूका हो अंतर मन।
तब सुख के मिले समंदर का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

जब फसल सूख कर जल के बिन,
तिनका तिनका बन गिर जाये।
फिर होने वाली वर्षा का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

सम्बन्ध कोई भी हो लेकिन,
यदि दुःख में साथ न दे अपना।
फिर सुख के उन संबंधों का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

छोटी छोटी खुशियों के क्षण,
निकले जाते हैं रोज जहाँ।
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

मन कटु वाणी से आहात हो,
भीतर तक छलनी हो जाये।
फिर बाद कहे प्रिय वचनो का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

सुख साधन चाहे जितने हों,
पर काया रोगों का घर हो।
फिर उन अगनित सुविधाओ का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

रामधारी सिंह दिनकर